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गउड़ी महला ५ मांझ ॥
दुख भंजनु तेरा नामु जी दुख भंजनु तेरा नामु ॥

आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर ग्यानु ॥१॥ रहाउ ॥

जितु घटि वसै पारब्रहमु सोयी सुहावा थाउ ॥

जम कंकरु नेड़ि न आवयी रसना हरि गुन गाउ ॥१॥

सेवा सुरति न जाणिया ना जापै आराधि ॥

ओट तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि ॥२॥

भए क्रिपाल गुसाईआ नठे सोग संताप ॥

तती वाउ न लगयी सतिगुरि रखे आपि ॥३॥

गुरु नारायनु दयु गुरु गुरु सचा सिरजणहारु ॥

गुरि तुठै सभ किछु पायआ जन नानक सद बलेहार ॥४॥२॥१७०॥

गउड़ी महला ५ ॥
सूके हरे कीए खिन माहे ॥

अंमृत द्रिसटि संचि जीवाए ॥१॥

काटे कसट पूरे गुरदेव ॥

सेवक कउ दीनी अपुनी सेव ॥१॥ रहाउ ॥

मिटि गई चिंत पुनी मन आसा ॥

करी दया सतिगुरि गुणतासा ॥२॥

दुख नाठे सुख आइ समाए ॥

ढील न परी जा गुरि फुरमाए ॥३॥

इछ पुनी पूरे गुर मिले ॥

नानक ते जन सुफल फले ॥४॥५८॥१२७॥

गउड़ी महला ५ ॥


ताप गए पायी प्रभि सांति ॥

सीतल भए कीनी प्रभ दाति ॥१॥

प्रभ किरपा ते भए सुहेले ॥

जनम जनम के बिछुरे मेले ॥१॥ रहाउ ॥

सिमरत सिमरत प्रभ का नाउ ॥

सगल रोग का बिनस्या थाउ ॥२॥

सहजि सुभाय बोलै हरि बानी ॥

आठ पहर प्रभ सिमरहु प्रानी ॥३॥

दूखु दरदु जमु नेड़ि न आवै ॥

कहु नानक जो हरि गुन गावै ॥४॥५੯॥१२८॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
जिसु सिमरत दूखु सभु जाय ॥

नामु रतनु वसै मनि आइ ॥१॥

जपि मन मेरे गोविन्द की बानी ॥

साधू जन रामु रसन वखानी ॥१॥ रहाउ ॥

इकसु बिनु नाही दूजा कोइ ॥

जा की द्रिसटि सदा सुखु होइ ॥२॥

साजनु मीतु सखा करि एकु ॥

हरि हरि अखर मन मह लेखु ॥३॥

रवि रहआ सरबत सुआमी ॥

गुन गावै नानकु अंतरजामी ॥४॥६२॥१३१॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
कोटि बिघन हिरे खिन माह ॥

हरि हरि कथा साधसंगि सुनाह ॥१॥

पीवत राम रसु अंमृत गुन जासु ॥

जपि हरि चरन मिटी खुधि तासु ॥१॥ रहाउ ॥

सरब कल्यान सुख सहज निधान ॥

जा कै रिदै वसह भगवान ॥२॥

अउखध मंत्र तंत सभि छारु ॥

करणैहारु रिदे मह धारु ॥३॥

तजि सभि भरम भज्यो पारब्रहमु ॥

कहु नानक अटल इहु धरमु ॥४॥८०॥१४੯॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
सांति भई गुर गोबिदि पायी ॥

ताप पाप बिनसे मेरे भायी ॥१॥ रहाउ ॥

राम नामु नित रसन बखान ॥

बिनसे रोग भए कल्यान ॥१॥

पारब्रहम गुन अगम बीचार ॥

साधू संगमि है निसतार ॥२॥

निरमल गुन गावहु नित नीत ॥

गई ब्याधि उबरे जन मीत ॥३॥

मन बच क्रम प्रभु अपना ध्यायी ॥

नानक दास तेरी सरणायी ॥४॥१०२॥१७१॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
नेत्र प्रगासु किया गुरदेव ॥

भरम गए पूरन भई सेव ॥१॥ रहाउ ॥

सीतला ते रख्या बेहारी ॥

पारब्रहम प्रभ किरपा धारी ॥१॥

नानक नामु जपै सो जीवै ॥

साधसंगि हरि अंमृतु पीवै ॥२॥१०३॥१७२॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
थिरु घरि बैसहु हरि जन प्यारे ॥

सतिगुरि तुमरे काज सवारे ॥१॥ रहाउ ॥

दुसट दूत परमेसरि मारे ॥

जन की पैज रखी करतारे ॥१॥

बादिसाह साह सभ वसि करि दीने ॥

अंमृत नाम महा रस पीने ॥२॥

निरभउ होइ भजहु भगवान ॥

साधसंगति मिलि कीनो दानु ॥३॥

सरनि परे प्रभ अंतरजामी ॥

नानक ओट पकरी प्रभ सुआमी ॥४॥१०८॥

 

गउड़ी महला ५ ॥
राखु पिता प्रभ मेरे ॥

मोह निरगुनु सभ गुन तेरे ॥१॥ रहाउ ॥

पंच बिखादी एकु गरीबा राखहु राखनहारे ॥

खेदु करह अरु बहुतु संतावह आइयो सरनि तुहारे ॥१॥

करि करि हार्यो अनिक बहु भाती छोडह कतहूं नाही ॥

एक बात सुनि ताकी ओटा साधसंगि मिटि जाही ॥२॥

करि किरपा संत मिले मोह तिन ते धीरजु पायआ ॥

संती मंतु दीयो मोह निरभउ गुर का सबदु कमायआ ॥३॥

जीति लए ओइ महा बिखादी सहज सुहेली बानी ॥

कहु नानक मनि भया परगासा पायआ पदु निरबानी ॥४॥४॥१२५॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
सरब कल्यान कीए गुरदेव ॥

सेवकु अपनी लाययो सेव ॥

बिघनु न लागै जपि अलख अभेव ॥१॥

धरति पुनीत भई गुन गाए ॥

दुरतु गया हरि नामु ध्याए ॥१॥ रहाउ ॥

सभनी थांयी रव्या आपि ॥

आदि जुगादि जा का वड परतापु ॥

गुर परसादि न होइ संतापु ॥२॥

गुर के चरन लगे मनि मीठे ॥

निरबिघन होइ सभ थांयी वूठे ॥

सभि सुख पाए सतिगुर तूठे ॥३॥

पारब्रहम प्रभ भए रखवाले ॥

जिथै किथै दीसह नाले ॥

नानक दास खसमि प्रतिपाले ॥४॥२॥

 

बिलावलु महला ५ ॥

चरन कमल प्रभ हिरदै ध्याए ॥

रोग गए सगले सुख पाए ॥१॥

गुरि दुखु काट्या दीनो दानु ॥

सफल जनमु जीवन परवानु ॥१॥ रहाउ ॥

अकथ कथा अंमृत प्रभ बानी ॥

कहु नानक जपि जीवे ग्यानी ॥२॥२॥२०॥

 

बिलावलु महला ५ ॥

सांति पायी गुरि सतिगुरि पूरे ॥

सुख उपजे बाजे अनहद तूरे ॥१॥ रहाउ ॥

ताप पाप संताप बिनासे ॥

हरि सिमरत किलविख सभि नासे ॥१॥

अनदु करहु मिलि सुन्दर नारी ॥

गुरि नानकि मेरी पैज सवारी ॥२॥३॥२१॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
सगल अनन्दु किया परमेसरि अपना बिरदु समार्या ॥

साध जना होए किरपाला बिगसे सभि परवार्या ॥१॥

कारजु सतिगुरि आपि सवार्या ॥

वडी आरजा हरि गोबिन्द की सूख मंगल कल्यान बीचार्या ॥१॥ रहाउ ॥

वण त्रिन त्रिभवन हर्या होए सगले जिय साधार्या ॥

मन इछे नानक फल पाए पूरन इछ पुजार्या ॥२॥५॥२३॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
रोगु गया प्रभि आपि गवायआ ॥

नीद पई सुख सहज घरु आया ॥१॥ रहाउ ॥

रजि रजि भोजनु खावहु मेरे भायी ॥

अंमृत नामु रिद माह ध्यायी ॥१॥

नानक गुर पूरे सरनायी ॥

जिनि अपने नाम की पैज रखायी ॥२॥८॥२६॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
ताप संताप सगले गए बिनसे ते रोग ॥

पारब्रहमि तू बखस्या संतन रस भोग ॥ रहाउ ॥

सरब सुखा तेरी मंडली तेरा मनु तनु आरोग ॥

गुन गावहु नित राम के इह अवखद जोग ॥१॥

आइ बसहु घर देस मह इह भले संजोग ॥

नानक प्रभ सुप्रसन्न भए लह गए ब्योग ॥२॥१०॥२८॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
बंधन काटे आपि प्रभि होआ किरपाल ॥

दीन दयाल प्रभ पारब्रहम ता की नदरि नेहाल ॥१॥

गुरि पूरै किरपा करी काट्या दुखु रोगु ॥

मनु तनु सीतलु सुखी भया प्रभ ध्यावन जोगु ॥१॥ रहाउ ॥

अउखधु हरि का नामु है जितु रोगु न व्यापै ॥

साधसंगि मनि तनि हितै फिरि दूखु न जापै ॥२॥

हरि हरि हरि हरि जापीऐ अंतरि लिव लायी ॥

किलविख उतरह सुधु होइ साधू सरणायी ॥३॥

सुनत जपत हरि नाम जसु ता की दूरि बलायी ॥

महा मंत्रु नानकु कथै हरि के गुन गायी ॥४॥२३॥५३॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
हरि हरि हरि आराधीऐ होईऐ आरोग ॥

रामचन्द की लसटिका जिनि मार्या रोगु ॥१॥ रहाउ ॥

गुरु पूरा हरि जापीऐ नित कीचै भोगु ॥

साधसंगति कै वारनै मिल्या संजोगु ॥१॥

जिसु सिमरत सुखु पाईऐ बिनसै ब्योगु ॥

नानक प्रभ सरणागती करन कारन जोगु ॥२॥३४॥६४॥

 

रागु बिलावलु महला ५ दुपदे घरु ५
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अवरि उपाव सभि त्याग्या दारू नामु लया ॥

ताप पाप सभि मिटे रोग सीतल मनु भया ॥१॥

गुरु पूरा आराध्या सगला दुखु गया ॥

राखनहारै राख्या अपनी करि मया ॥१॥ रहाउ ॥

बाह पकड़ि प्रभि काढ्या कीना अपनया ॥

सिमरि सिमरि मन तन सुखी नानक निरभया ॥२॥१॥६५॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
रोगु मिटायआ आपि प्रभि उपज्या सुखु सांति ॥

वड परतापु अचरज रूपु हरि कीनी दाति ॥१॥

गुरि गोविन्दि क्रिपा करी राख्या मेरा भायी ॥

हम तिस की सरणागती जो सदा सहायी ॥१॥ रहाउ ॥

बिरथी कदे न होवयी जन की अरदासि ॥

नानक जोरु गोविन्द का पूरन गुणतासि ॥२॥१३॥७७॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
ताती वाउ न लगयी पारब्रहम सरणायी ॥

चउगिरद हमारै राम कार दुखु लगै न भायी ॥१॥

सतिगुरु पूरा भेट्या जिनि बनत बणायी ॥

राम नामु अउखधु दिया एका लिव लायी ॥१॥ रहाउ ॥

राखि लीए तिनि रखनहारि सभ ब्याधि मिटायी ॥

कहु नानक किरपा भई प्रभ भए सहायी ॥२॥१५॥७੯॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
अपने बालक आपि रखिअनु पारब्रहम गुरदेव ॥

सुख सांति सहज आनद भए पूरन भई सेव ॥१॥ रहाउ ॥

भगत जना की बेनती सुनी प्रभि आपि ॥

रोग मिटाय जीवालिअनु जा का वड परतापु ॥१॥

दोख हमारे बखसिअनु अपनी कल धारी ॥

मन बांछत फल दितिअनु नानक बलेहारी ॥२॥१६॥८०॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
तापु लाहआ गुर सिरजनहारि ॥

सतिगुर अपने कउ बलि जायी जिनि पैज रखी सारै संसारि ॥१॥ रहाउ ॥

करु मसतकि धारि बालिकु रखि लीनो ॥

प्रभि अंमृत नामु महा रसु दीनो ॥१॥

दास की लाज रखै मेहरवानु ॥

गुरु नानकु बोलै दरगह परवानु ॥२॥६॥८६॥

 

बिलावलु महला ५ ॥
ताप पाप ते राखे आप ॥

सीतल भए गुर चरनी लागे राम नाम हिरदे मह जाप ॥१॥ रहाउ ॥

करि किरपा हसत प्रभि दीने जगत उधार नव खंड प्रताप ॥

दुख बिनसे सुख अनद प्रवेसा त्रिसन बुझी मन तन सचु ध्राप ॥१॥

अनाथ को नाथु सरनि समरथा सगल स्रिसटि को मायी बापु ॥

भगति वछल भै भंजन सुआमी गुन गावत नानक आलाप ॥२॥२०॥१०६॥

 

सोरठि महला ५ ॥
करि इसनानु सिमरि प्रभु अपना मन तन भए अरोगा ॥

कोटि बिघन लाथे प्रभ सरना प्रगटे भले संजोगा ॥१॥

प्रभ बानी सबदु सुभाख्या ॥

गावहु सुणहु पड़हु नित भायी गुर पूरै तू राख्या ॥ रहाउ ॥

साचा साहबु अमिति वडायी भगति वछल दयाला ॥

संता की पैज रखदा आया आदि बिरदु प्रतिपाला ॥२॥

हरि अंमृत नामु भोजनु नित भुंचहु सरब वेला मुखि पावहु ॥

जरा मरा तापु सभु नाठा गुन गोबिन्द नित गावहु ॥३॥

सुनी अरदासि सुआमी मेरै सरब कला बनि आई ॥

प्रगट भई सगले जुग अंतरि गुर नानक की वड्यायी ॥४॥११॥

 

सोरठि महला ५ ॥
सूख मंगल कल्यान सहज धुनि प्रभ के चरन नेहार्या ॥

राखनहारै राख्यो बारिकु सतिगुरि तापु उतार्या ॥१॥

उबरे सतिगुर की सरणायी ॥

जा की सेव न बिरथी जायी ॥ रहाउ ॥

घर मह सूख बाहरि फुनि सूखा प्रभ अपुने भए दयाला ॥

नानक बिघनु न लागै कोऊ मेरा प्रभु होआ किरपाला ॥२॥१२॥४०॥

 

सोरठि म ५ ॥
गए कलेस रोग सभि नासे प्रभि अपुनै किरपा धारी ॥

आठ पहर आराधहु सुआमी पूरन घाल हमारी ॥१॥

हरि जीउ तू सुख सम्पति रासि ॥

राखि लैहु भायी मेरे कउ प्रभ आगै अरदासि ॥ रहाउ ॥

जो मागउ सोयी सोयी पावउ अपने खसम भरोसा ॥

कहु नानक गुरु पूरा भेट्यो मिट्यो सगल अन्देसा ॥२॥१४॥४२॥

 

सोरठि महला ५ ॥
सिमरि सिमरि गुरु सतिगुरु अपना सगला दूखु मिटायआ ॥

ताप रोग गए गुर बचनी मन इछे फल पायआ ॥१॥

मेरा गुरु पूरा सुखदाता ॥

करन कारन समरथ सुआमी पूरन पुरखु बिधाता ॥ रहाउ ॥

अनन्द बिनोद मंगल गुन गावहु गुर नानक भए दयाला ॥

जै जै कार भए जग भीतरि होआ पारब्रहमु रखवाला ॥२॥१५॥४३॥

 

सोरठि महला ५ ॥
दुरतु गवायआ हरि प्रभि आपे सभु संसारु उबार्या ॥

पारब्रहमि प्रभि किरपा धारी अपना बिरदु समार्या ॥१॥

होयी राजे राम की रखवाली ॥

सूख सहज आनद गुन गावहु मनु तनु देह सुखाली ॥ रहाउ ॥

पतित उधारनु सतिगुरु मेरा मोह तिस का भरवासा ॥

बखसि लए सभि सचै साहबि सुनि नानक की अरदासा ॥२॥१७॥४५॥

 

सोरठि महला ५ ॥
बखस्या पारब्रहम परमेसरि सगले रोग बिदारे ॥

गुर पूरे की सरनी उबरे कारज सगल सवारे ॥१॥

हरि जनि सिमर्या नाम अधारि ॥

तापु उतार्या सतिगुरि पूरै अपनी किरपा धारि ॥ रहाउ ॥

सदा अनन्द करह मेरे प्यारे हरि गोविदु गुरि राख्या ॥

वडी वड्यायी नानक करते की साचु सबदु सति भाख्या ॥२॥१८॥४६॥

 

सोरठि महला ५ ॥
भए क्रिपाल सुआमी मेरे तितु साचै दरबारि ॥

सतिगुरि तापु गवायआ भायी ठांढि पई संसारि ॥

अपने जिय जंत आपे राखे जमह कीयो हटतारि ॥१॥

हरि के चरन रिदै उरि धारि ॥

सदा सदा प्रभु सिमरीऐ भायी दुख किलबिख काटणहारु ॥१॥ रहाउ ॥

तिस की सरनी ऊबरै भायी जिनि रच्या सभु कोइ ॥

करन कारन समरथु सो भायी सचै सची सोइ ॥

नानक प्रभू ध्याईऐ भायी मनु तनु सीतलु होइ ॥२॥१੯॥४७॥

 

सोरठि महला ५ ॥
संतहु हरि हरि नामु ध्यायी ॥

सुख सागर प्रभु विसरउ नाही मन चिन्दिअड़ा फलु पायी ॥१॥ रहाउ ॥

सतिगुरि पूरै तापु गवायआ अपनी किरपा धारी ॥

पारब्रहम प्रभ भए दयाला दुखु मिट्या सभ परवारी ॥१॥

सरब निधान मंगल रस रूपा हरि का नामु अधारो ॥

नानक पति राखी परमेसरि उधर्या सभु संसारो ॥२॥२०॥४८॥

 

सोरठि महला ५ ॥
मेरा सतिगुरु रखवाला होआ ॥

धारि क्रिपा प्रभ हाथ दे राख्या हरि गोविदु नवा निरोआ ॥१॥ रहाउ ॥

तापु गया प्रभि आपि मिटायआ जन की लाज रखायी ॥

साधसंगति ते सभ फल पाए सतिगुर कै बलि जांयी ॥१॥

हलतु पलतु प्रभ दोवै सवारे हमरा गुनु अवगुनु न बीचार्या ॥

अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धार्या ॥२॥२१॥४੯॥

 

सोरठि महला ५ ॥
जिय जंत्र सभि तिस के कीए सोयी संत सहायी ॥

अपुने सेवक की आपे राखै पूरन भई बडायी ॥१॥

पारब्रहमु पूरा मेरै नालि ॥

गुरि पूरै पूरी सभ राखी होए सरब दयाल ॥१॥ रहाउ ॥

अनदिनु नानकु नामु ध्याए जिय प्रान का दाता ॥

अपुने दास कउ कंठि लाय राखै ज्यु बारिक पित माता ॥२॥२२॥५०॥

 

सोरठि महला ५ ॥
ठाढि पायी करतारे ॥

तापु छोडि गया परवारे ॥

गुरि पूरै है राखी ॥

सरनि सचे की ताकी ॥१॥

परमेसरु आपि होआ रखवाला ॥

सांति सहज सुख खिन मह उपजे मनु होआ सदा सुखाला ॥ रहाउ ॥

हरि हरि नामु दीयो दारू ॥

तिनि सगला रोगु बिदारू ॥

अपनी किरपा धारी ॥

तिनि सगली बात सवारी ॥२॥

प्रभि अपना बिरदु समार्या ॥

हमरा गुनु अवगुनु न बीचार्या ॥

गुर का सबदु भइयो साखी ॥

तिनि सगली लाज राखी ॥३॥

बोलायआ बोली तेरा ॥

तू साहबु गुनी गहेरा ॥

जपि नानक नामु सचु साखी ॥

अपुने दास की पैज राखी ॥४॥६॥५६॥

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